Not known Factual Statements About Shodashi
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Oh Lord, the master of universe. You are the eternal. You are classified as the lord of every one of the animals and many of the realms, you might be The bottom from the universe and worshipped by all, with no you I am not a soul.
The worship of such deities follows a specific sequence called Kaadi, Hadi, and Saadi, with Every single goddess connected to a particular approach to devotion and spiritual apply.
The Mahavidya Shodashi Mantra aids in meditation, enhancing internal quiet and emphasis. Chanting this mantra fosters a deep feeling of tranquility, enabling devotees to enter a meditative point out and link with their internal selves. This advantage improves spiritual awareness and mindfulness.
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वर्गानुक्रमयोगेन यस्याख्योमाष्टकं स्थितम् ।
यह उपरोक्त कथा केवल एक कथा ही नहीं है, website जीवन का श्रेष्ठतम सत्य है, क्योंकि जिस व्यक्ति पर षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी की कृपा हो जाती है, जो व्यक्ति जीवन में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है, क्योंकि यह शक्ति शिव की शक्ति है, यह शक्ति इच्छा, ज्ञान, क्रिया — तीनों स्वरूपों को पूर्णत: प्रदान करने वाली है।
ह्रीङ्काराम्भोजभृङ्गी हयमुखविनुता हानिवृद्ध्यादिहीना
सेव्यं गुप्त-तराभिरष्ट-कमले सङ्क्षोभकाख्ये सदा ।
भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।
लक्ष्या या चक्रराजे नवपुरलसिते योगिनीवृन्दगुप्ते
लक्ष्मी-वाग-गजादिभिः कर-लसत्-पाशासि-घण्टादिभिः
ह्रीं ह्रीं ह्रीमित्यजस्रं हृदयसरसिजे भावयेऽहं भवानीम् ॥११॥
The intricate relationship in between these groups as well as their respective roles in the cosmic order is a testomony on the loaded tapestry of Hindu mythology.
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५॥